देश में हर साल 15 लाख लोगों को होता है कैंसर, मल्टीपल माइलोमा उनमें से एक, जानें इसके लक्षण और कारण
सर्दियों में कई तरह की मौसमी बीमारियों की चपेट में आने से शरीर में जोड़ों का दर्द, सर्दी-खांसी और हाथ-पैर में सूजन की समस्या रहने लगती है। इस समय हड्डियों में भी कई तरह की दिक्कतें होती हैं। इससे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का खतरा भी बढ़ सकता है। अगर रेयर कैंसर हो, तो ये और भी खतरनाक है।
भोपाल के जवाहरलाल नेहरू कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के रिसर्च डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर एन गणेश बताते हैं कि एक स्कूल टीचर रूम का पर्दा बंद कर रहे थे। उन्होंने जैसे ही पर्दा खींचा, वे स्लिप हो गए और उनके हाथ में फ्रैक्चर हो गया। ये एक तरह से पैथोलॉजिकल फ्रैक्चर था। जो मल्टीपल माइलोमा का लक्षण है।
मल्टीपल माइलोमा की केस स्टडी
फ्रैक्चर होने पर स्कूल टीचर ऑर्थोपेडिक सर्जन के पास गए। इस दौरान सबसे बड़ी भूल यह हुई कि उनके ब्लड की प्रोफाइल और पिक्चर इन-प्रिंट्स का टेस्ट नहीं किया गया। डॉक्टर का कहना है कि अगर उनका टेस्ट समय रहते कर लिया जाता तो शरीर में प्लाज्मा सेल बढ़ने की बात सामने आ जाती।
डेढ़ महीने से इस समस्या से जूझ रहे स्कूल के टीचर को हड्डियों के बाद सिर में भी दर्द रहने लगा। डॉक्टर के कहने पर उन्होंने सिर का एक्सरे और छाती का इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट कराया। एक्सरे की रिपोर्ट में आया कि उनके सिर में छोटे-छोटे गोल छेद हो गए हैं, जैसे किसी ने कागज पर जगह-जगह पंच मशीन से छेद कर दिए हों। उनमें मल्टीपल माइलोमा बीमारी होने की पुष्टि हुई।
ये एक तरह का ब्लड कैंसर है। उनका इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट किया गया था। इस तरह के टेस्ट में बीटा और गामा ग्लोब-लिन के लेवल की जांच की जाती है। डॉक्टर हर महीने इस टेस्ट की सलाह देते हैं। इस बीमारी का डायग्नोसिस ऐसे ही किया जाता है।
हर साल भारत में कैंसर के 15 लाख केस सामने आते हैं
मेदांता ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल भारत में कैंसर के 15 लाख केस सामने आते हैं। ASCO (अमेरिकन सोसायटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी) के मुताबिक, इस साल अमेरिका में मल्टीपल माइलोमा के 32.27 हजार पेशेंट सामने आए। इनमें 17.53 हजार पुरुष और 14.74 हजार महिलाएं हैं।
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मल्टीपल माइलोमा के बारे में जानें वह सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
क्या होती है यह बीमारी?
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शरीर में सेल बढ़ने से कैंसर का खतरा होता है। ये किसी भी भाग में हो सकता है। ब्लड कैंसर की शुरुआत ब्लड टिश्यू से होती है। इसका असर पहले इम्युन सिस्टम पर होता है।
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अब तक तीन तरह के ब्लड कैंसर रिपोर्ट किए गए हैं। इनमें लिंफोमा, ल्यूकेमिया, और मल्टीपल माइलोमा शामिल हैं। भारत में सबसे ज्यादा 64% लिंफोमा, 25% ल्यूकेमिया और 11% मल्टीपल माइलोमा के पेशेंट सामने आए हैं।
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मल्टीपल माइलोमा रेयर कैंसर है। पेशेंट को इस बीमारी का पता आसानी से नहीं चल पाता है। ये नॉर्मल प्लाज्मा सेल बोन मेरो में पाया जाता है। ये इम्युन सिस्टम का मुख्य भाग होता है। इम्युन सिस्टम कई सारे सेल से मिलकर बनता है, जो वायरस और बीमारी से लड़ने में मदद करते हैं।
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इसके अलावा लिंफोसाइट सेल (लिंफ सेल), जो व्हाइट ब्लड सेल है। ये भी इम्युन सिस्टम में पाए जाते हैं। ये दो तरह के होते हैं, पहला T सेल और दूसरा B सेल। ये सेल बॉडी के लिंफ नोड्स, बोन मेरो और ब्लड स्ट्रीम में पाए जाते हैं।
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इन्फेक्शन B सेल को रिस्पॉन्स करता है, तो ये प्लाज्मा में बदल जाता है। प्लाज्मा सेल एंटीबॉडी बनाता है। इसको इम्युनोग्लोबिन कहते हैं। ये बॉडी के जम्स पर अटैक कर उसे खत्म करता है। प्लाज्मा एक सॉफ्ट टिश्यू की तरह बोन मेरो में होता है। इसकी मदद से नॉर्मल बोन मेरो में रेड सेल, व्हाइट सेल और प्लेटलेट्स पाई जाती है।
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प्लाज्मा सेल में कैंसर होने से कंट्रोल के बाहर हो जाता है। इसे ही मल्टीपल माइलोमा कहा जाता है। इससे प्लाज्मा सेल में एब-नॉर्मल प्रोटीन (एंटीबॉडी) डेवलप होने लगती है। इसके कई नाम हैं, जैसे- मोनोक्लोनल, इम्युनोग्लोबिन, मोनोक्लोनल प्रोटीन, M-स्पाइक या पैराप्रोटीन। इसके अलावा कई तरह के सेल डिसऑर्डर होते हैं, जैसे- मोनोक्लोनल गैमोपैथी ऑफ अन-सर्टेन सिग्निफिकेंट (MGUS), स्मोल्डरिंग मल्टीपल माइ-लोमा (SMM), सोलिट्री प्लाज्मा साइटोमा और लाइट चैन एमीलोइडोसिस।
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इस बीमारी का ट्रीटमेंट हर बार सही हो, ऐसा जरूरी नहीं है। अगर मल्टीपल माइलोमा धीरे-धीरे डेवलप होने लगता है, तो इसके लक्षण नजर नहीं आते हैं। डॉक्टर पेशेंट को मॉनिटर पर रखते हैं। वे इलाज में जल्दबाजी नहीं करते हैं।
इसका डायग्नोसिस कैसे किया जाता है?
एक्सपर्ट के मुताबिक, प्लाज्मा सेल एक जगह इकट्ठे हो जाएं तो उसे प्लाज्मा साइकोम कहते हैं। ये भी एक तरह का कैंसर है, लेकिन इसका लाइन ऑफ ट्रीटमेंट अलग है। इसमें रेडियोथैरेपी, कीमियोथैरेपी दी जाती है। अगर सेल पूरे शरीर में ट्रेवल कर जाएं, तो इसे मल्टीपल माइलोमा कहते हैं। ब्लड क्लॉट में सीरम प्रोटीन निकलने लगता है। ये अल्फा-बिन और ग्लोब-लिन होते हैं।
ग्लोब-लिन में बीटा, गामा, अल्फा 1 और अल्फा 2 प्रोटीन पाए जाते हैं। ये सभी तब नजर आते हैं, जब बीटा और गामा ग्लोब-लिन का डायग्नोसिस किया जाता है। इन प्रोटीन का डायग्नोसिस बनाने के लिए इलेक्ट्रोफोसिस टेस्ट की मदद ली जाती है।
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प्राइमरी डायग्नोसिस कैसे बनता है?
- मल्टीपल माइलोमा में साइटिका-पेन, स्पॉन्डिलाइटिस-पेन, हड्डियों में जलन, करंट जैसा लगना, जरा में फ्रैक्चर होने जैसी समस्या बढ़ जाती है। इसका पहला डायग्नोसिस ऑर्थोपेडिक सर्जन करता है। इसमें जो सैंपल लिए जाते हैं, उन्हें इलेक्ट्रोफोसिस टैंक में डालकर करंट के अगेंस्ट रन कराने पर प्रोटीन अलग-अलग पोजीशन ले लेता है।
- इसमें प्रोटीन के स्टेटस को देखा जाता है। अगर प्रोटीन का पीक ज्यादा होता है, तो कंडीशन ज्यादा सीवियर होती है।
- एक्सपर्ट्स की मानें तो इन समस्या में बोन डैमेज, रीनल फेलियर, ब्लड फिल्टर न होना और ब्लॉकेज होने लगते हैं। कई बार ये बीमारी बहुत तेजी से फैलती है।
- इस बीमारी में कई टेस्ट होते हैं, जैसे- यूरीन, इलेक्ट्रोफोसिस, इम्नो-इलेक्ट्रोफोसिस, और इम्युनोग्लोबिन। अगर ये समस्या बढ़ जाती है तो आखिर में स्टेम सेल ट्रांसप्लांट की नौबत आ जाती है।
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